चार धाम यात्रा की बात करें तो हमारे दिमाग में एक ही ख़याल आता है यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ लेकिन क्या आपको पता है कि ये चार नहीं बल्कि एक ही धाम है ? | इसे छोटी चारधाम यात्रा कहा जाता है | कहा तो ये भी जाता है की जो चारधाम यात्रा करने में समर्थ नहीं होते हैं तो वो लोग इन धामों की यात्रा करके भी मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं |
यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ, हिंदू तीर्थ यात्रा में से एक है। चार धाम चार पवित्र मंदिर हैं जो उत्तराखंड के गढ़वाल में हैं | यमुनोत्री देवी यमुना का निवास स्थान है, गंगोत्री देवी गंगा का, केदारनाथ भगवान शिव और बद्रीनाथ भगवान विष्णु। हिंदू पौराणिक कथाओं के हिसाब से ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक हिंदू को अपने पापों से मुक्त होने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए इन मंदिरों के दर्शन करने चाहिए। तभी हर साल हजारों यात्री चार धाम यात्रा के लिए आते हैं।
क्यों इतनी प्रचलित है चारधाम यात्रा ?
पौराणिक कथाओं की माने तो यदि कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में एक बार चारधाम यात्रा कर ले, तो वो उन पापों से मुक्त हो जाता है जो उसने अपने अतीत में किए थे और उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही विश्वास दुनिया भर के हजारों तीर्थयात्रियों को चारधाम यात्रा करने के लिए प्रेरित करता है।
दूसरा ये भी कहा जा सकता है कि पहले के समय में अपने माता-पिता को चारधाम यात्रा पर ले जाना जितना धार्मिक रूप से पवित्र कार्य और कुछ नहीं हो सकता था । यही कारण है कि आज भी लोग अपने माता-पिता की इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए उन्हें चारधाम यात्रा पर ले जाते हैं।
तीसरा ये भी कह सकते हैं कि ये चारों तीर्थस्थल गढ़वाल क्षेत्र में हैं जहां बर्फ की मोटी चादर और आकर्षक वातावरण से भरपूर हैं। प्राकृतिक जड़ी-बूटियाँ और हरियाली सभी को मन मोह लेती हैं, यही कारण रहा है कि हमारे ऋषि-मुनियो ने सैकड़ों वर्षों तक यहाँ तपस्या की थी |
आइए शुरू करते हैं चारधाम यात्रा का सफर, इस सफर में आपको कहाँ कहाँ पर क्या मान्यता है और कहाँ पर क्या हुआ था विस्तार से लिए चलते हैं बहुत से लोगों को तो ये भी नहीं पता कि चारधाम यात्रा एक शुरू कहाँ से होती है तो हम आपको बता दें कि चारधाम यात्रा हमेशा यमुनोत्री धाम से शुरू होकर, गंगोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ धाम पर समाप्त होती है।
1. यमुनोत्री धाम
यमुनोत्री वह धाम है जहाँ भक्त अपनी चारधाम यात्रा की शुरुवात करते हैं। यह धाम देवी यमुना को समर्पित है जो सूर्य की बेटी और यम (यमराज) की जुड़वां बहन थी। यह धाम यमुना नदी के तट पर है जिसका उद्द्गम स्थल कालिंद पर्वत है। पौराणिक कथाओं की माने तो एक बार भैया दूज के दिन, यमराज ने देवी यमुना को वचन दिया कि जो कोई भी नदी में डुबकी लगाएगा वो यमलोक नहीं जाएगा और उसे मोक्ष प्राप्त होगा। शायद यही कारण है कि यमुनोत्री धाम चारों धामों में सबसे पहले आता है।
लोगों का ये भी मानना है कि यमुना के पवित्र जल में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और असामयिक मौत से रक्षा होती है। शीतकाल में ये जगह दुर्गम हो जाने के कारण मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं और देवी यमुना की मूर्ति (प्रतीक चिन्ह) को उत्तरकाशी के खरसाली गांव में लाया जाता है और अगले छह महीने तक माता यमुनोत्री की प्रतिमा, शनि देव मंदिर में विराजमान रहती है |
2. गंगोत्री धाम
चारधाम यात्रा में अगला प्रमुख धाम गंगोत्री धाम है। यह मंदिर देवी गंगा को समर्पित है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के तट पर स्थित है। गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र और सबसे लंबी नदी है। गोमुख ग्लेशियर गंगा / भागीरथी नदी का वास्तविक स्रोत है जो गंगोत्री मंदिर से 19 किमी की दूरी पर है। कहा जाता है कि गंगोत्री धाम वह स्थान है जहाँ देवी गंगा पहली बार भागीरथ द्वारा 1000 वर्षों की तपस्या के बाद स्वर्ग से उतरी थीं।
मानना तो ये भी है कि देवी गंगा धरती पर आने के लिए तैयार थीं लेकिन इसकी तीव्रता ऐसी थी कि पूरी पृथ्वी इसके पानी के नीचे डूब सकती थी। तब पृथ्वी को बचाने के लिए, भगवान शिव ने गंगा नदी को अपने जटा में धारण किया और गंगा नदी को धारा के रूप में पृथ्वी पर छोड़ा और भागीरथी नदी के नाम से जानी गयी। अलकनंदा और भागीरथी नदी के संगम, देवप्रयाग पर इसका नाम गंगा नदी मिला।
प्रत्येक साल सर्दियों में, गोवर्धन पूजा के अवसर पर गंगोत्री धाम के कपाट बंद कर हो जाते है और माँ गंगा की प्रतीक चिन्हों को गंगोत्री से हरसिल शहर के मुखबा गांव में लाई जाती है और अगले छह महीनों तक वही रहती है।
3. केदारनाथ धाम
चारधाम यात्रा में तीसरा प्रमुख धाम केदारनाथ धाम है। केदारनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और पंच-केदार में सबसे प्रमुख मंदिर है। यह धाम हिमालय की गोद में स्थित है जो आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा निर्मित है।
किंवदंतियों के अनुसार, कुरुक्षेत्र की महान लड़ाई के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे, और इन पापो से मुक्त होने के लिये उन्होंने शिव की खोज शुरू की । परन्तु भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे । पांडवों से छिपने के लिए, शिव ने खुद को एक बैल में बदल दिया और जमीन पर अंतर्ध्यान हो गए। लेकिन भीम ने पहचान लिया कि बैल कोई और नहीं बल्कि शिव है और उन्होंने तुरंत बैल के पीठ का भाग पकड़ लिया। पकडे जाने के डर से बैल जमीन में अंतर्ध्यान हो जाता है और पांच अलग-अलग स्थानों पर फिर से दिखाई देता है- ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ ( जो आज पशुपतिनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है), शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
दीपावली के बाद, सर्दियों में मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते है और शिव की मूर्ति को उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में ले जाया जाता है जो अगले छह महीनों तक उखीमठ में रहते हैं ।
4. बद्रीनाथ धाम
चारधाम यात्रा का चौथा और अंतिम धाम बद्रीनाथ धाम है। बद्रीनाथ मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करते हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है जो नर और नारायण पर्वत के बीच स्थित है। यही एकमात्र धाम है जो चारधाम और छोटा चारधाम दोनों का हिस्सा है।
बद्रीनाथ मंदिर के अंदर, भगवान विष्णु की 1 मीटर लंबी काले पत्थर की मूर्ति है जो अन्य देवी-देवताओं से घिरा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति 8 स्वयंभू या स्वयं व्यक्त क्षेत्र मूर्ति में से एक है, जिसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी।
किंवदंतियों के अनुसार – एक बार भगवान विष्णु ने ध्यान के लिए एक शांत जगह की तलाश करते हुए इस स्थान पर आ पहुंचे । यहाँ भगवान विष्णु अपने ध्यान में इतने तल्लीन हो गए कि उन्हें अत्यधिक ठंड के मौसम का भी एहसास नहीं हुआ ।तब इस मौसम से बचाने के लिये देवी लक्ष्मी ने खुद को एक बद्री वृक्ष में बदल लिया। देवी लक्ष्मी की भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान विष्णु ने इस स्थान का नाम “बद्रीकाश्रम” रखा।
अन्य धामों की तरह, बद्रीनाथ धाम भी मध्य अप्रैल से नवंबर की शुरुआत तक, केवल छह महीने के लिए ही खुलता है। सर्दियों के दौरान, भगवान विष्णु की मूर्ति जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में स्थानांतरित कर दी जाती है और अगले छह महीने तक वहाँ रहती है।
तो ये था चार धाम यात्रा का महत्तव, आस्था, तमाम जनमानस का विश्वास जो आज भी हर हिंदू धर्म के लोगों के लिए एक मोक्ष प्राप्ति का पथ है | ये पवित्र स्थल भगवान में विश्वास रखने वाले को उनकी अटूट श्रद्धा का केंद्र है |
तो बस अंत में यही कहूंगा देव भूमि उत्तराखंड में आपका स्वागत है |