भारत का अंतिम गांव Mana will now be known as “First Indian Village”

उत्तराखंड की बात की जाए तो हमारे दिलो-दिमाग में प्रकृतिक और देवभूमि की छवि आ जाती है और आये भी क्यों ना क्योंकि हम बात ही जो कर रहे हैं उत्त्तराखंड (गढ़वाल ) की। ….
भारत में कई ऐसे गांव हैं, जो पौराणिक रहस्यों को अपने आप में संजोये हुए हैं। कुछ ऐसा ही ये गांव भी है। और आप को बता दें ये गांव श्री बद्रीनाथ धाम से चार किलोमीटर की दूरी पर है, जो चीन की सीमा से लगा हुआ है |
हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के माणा गांव की, जिसे पहले भारत का अंतिम गांव कहा जाता था, परअब भारत के पहले गांव के तौर पर जाना जाएगा | उत्तराखंड में स्थित माणा गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ कई अन्य कारणों की से भी मशहूर है। कहा तो ये भी जाता है कि कि इस गांव से होकर ही पांडव स्वर्ग गए थे। और इस गांव का रिश्ता महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है |
माणा नामक यह गांव करीब 19 हजार फीट की ऊंचाई पर बसा है। कहते हैं कि इस गांव का नाम मणिभद्र देव के नाम पर पड़ा था। पौराणिक मान्यताओं के हिसाब से यह भारत का एकमात्र ऐसा गांव है, सबसे पवित्र माना जाता है।
माणा की बात करें तो यहाँ कड़ाके की सर्दी पड़ती है और छह महीने तक यहाँ केवल बर्फ से ही ढका रहता है। सर्दियां शुरु होने से पहले यहां के ग्रामीण नीचे स्थित चमोली जिले के गाँवों में अपना बसेरा बना लेते हैं। और आपको ये जानकर भी काफी हैरानी होगी कि यहां का एकमात्र इंटर कॉलेज छह महीने माणा में और छह महीने चमोली में चलता है।
बद्रीनाथ से तीन किमी आगे और समुद्र तल से 18,000 फुट की ऊँचाई पर बसा है भारत का प्रथम (अंतिम)गाँव माणा। भारत-तिब्बत सीमा से लगे इस गाँव की सांस्कृतिक विरासत अनमोल है साथ ही यह अपनी अनूठी परम्पराओं के लिए भी मशहूर है। इस गाँव के आसपास कई दर्शनीय स्थल भी हैं जिनमें व्यास गुफा, गणेश गुफा, सरस्वती मन्दिर, भीम पुल, वसुधारा आदि हैं।

वैसे तो यह क्षेत्र सालभर ठंडा ही रहता है | जब अप्रैल-मई में जब यहाँ बर्फ पिघलती है, तो यहां की हरियाली देखने लायक होती है। यहाँ की मिट्टी आलू की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। इनके अलावा यहां भोजपत्र भी में पाए जाते हैं, जिन पर महापुरुषों ने ग्रंथों की रचना की थी। बद्रीनाथ में तो ये बिकते भी हैं। यहां के लोग पशु-पालन भी करते हैं। यहाँ भेड़-बकरियाँ काफी संख्या में पाली जाती है। हिमालय क्षेत्र में मिलने वाली अचूक जड़ी-बूटियों के लिए भी माणा प्रसिद्ध है।
माणा गाँव की आबादी तकरीबन 400 के करीब है और यहाँ लगभग 60 घर हैं। और इनको बनाने में लकड़ी का ज्यादा प्रयोग होता है। छत पत्थर के पटालों से की बनी है। इन घरों की खूबी ये है कि ये मकान भूकम्प के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं। इन मकानों में ऊपर की मंज़िल में घर के लोग रहते हैं जबकि नीचे पशुओं को रखा जाता है।
माणा गाँव से लगे कई ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल हैं। गाँव से कुछ ऊपर है गणेश गुफा और उसके बाद व्यास गुफा। व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी और वेदों को चार भागों में बाँटा था। व्यास गुफा और गणेश गुफा यहाँ होने से इस पौराणिक कथा को सिद्ध करते हैं कि महाभारत और पुराणों का लेखन करते समय व्यासजी ने बोला और गणेशजी ने लिखा था। व्यास गुफा, गणेश गुफा से बड़ी है। गुफा में प्रवेश करते ही किसी की भी नज़र एक छोटी सी शिला पर पड़ती है। इस शिला पर प्राकृत भाषा में वेदों का अर्थ लिखा गया है।

इसके पास ही है भीमपुल। पांडव इसी मार्ग से होते हुए अलकापुरी गए थे। कहते हैं कि इस स्थान को स्वर्ग जाने का रास्ता मानते हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ भीम पुल से एक लोक मान्यता भी जुड़ी हुई है। जब पांडव इस मार्ग से गुजरे थे। तब वहाँ दो पहाड़ियों के बीच गहरी खाई थी, जिसे पार करना आसान नहीं था। तब कुंतीपुत्र भीम ने एक भारी-भरकम चट्टान उठाकर फेंकी और खाई को पाटकर पुल के रूप में परिवर्तित कर दिया। बगल में स्थानीय लोगों ने भीम का मंदिर भी बना रखा है।

वसुधारा- इसी रास्ते से आगे बढ़ें तो पाँच किमी. का पैदल सफर तय कर पर्यटक पहुँचते हैं वसुधारा। लगभग 400 फीट ऊँचाई से गिरता इस जल-प्रपात का पानी मोतियों की बौछार करता हुआ-सा प्रतीत होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पानी की बूँदें पापियों के तन पर नहीं पड़तीं। यह झरना इतना ऊँचा है कि पर्वत के मूल से पर्वत शिखर तक पूरा प्रपात एक नज़र में नहीं देखा जा सकता।

सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने सीमावर्ती गांव की सीमा पर एक साइन बोर्ड भी लगा दिया. जो कि अब भारत के प्रथम गांव के नाम से जाना जाने लगा है | कहा जा सकता है कि ये भी भारत की समृद्धि का ही एक प्रतीक है कि भारत के अंतिम गांव को ही अब प्रथम कर दिया गया है | वैसे तो देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में अलौकिक विरासत को संजोये हुए है और इसमें कोई दो राय नहीं है कि हर साल दुनिया भर से पर्यटक, श्रद्धालु और प्रकृति प्रेमी यहाँ पर आते हैं और यहाँ समय बिताते हैं | और यहाँ की अमित छाप को संजो कर जाते है |

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