क्यों एक हज़ार दो सौ घंटो में बनाये जाने वाला टाइटैनिक सिर्फ दो ही घंटो में क्यों डूब गया 10 अप्रैल 1912 ये वो दिन था जब दुनिया का सबसे बड़ा और महंगा समुद्री जहाज अपने पहले सफर के आगाज के लिए बिल्कुल तैयार था | और उस दिन अटलांटिक महासागर एकदम शांत था और समुद्री तूफ़ान आने का दूर दूर तक कोई अंदेशा भी नहीं था | जहाज में 1500 पैसेंजर भी सवार हो गए थे, और लाखो लोग बंदरगाह पर टाइटैनिक के पहले सफर का आगाज़ देखने के लिए | न पैसेंजर को और न ही अलविदा करने वाले लाखों लोगों को, और न ही टाइटैनिक के चालक दल को कि जो जहाज कुछ ही देर में रवाना होने वाला उसको बनाते समय ऐसी गलतियां की गयी हैं जो इस जहाज को मुश्किल में डाल सकती हैं |
सबसे महंगा
सबसे आलिशान
और सबसे ताकतवर जहाज की ऐसी गलतियां जो ना की जाती तो आज टाइटैनिक अपने डूबने की नहीं बल्कि अपने कायमाबी की वजह से दुनिया में मशहूर होता |
आखिर ऐसी कौन से गलती थी जो 40 साल के अनुभव वाले टाइटैनिक के कप्तान एडवर्ड स्मिथ को भी नज़र नहीं आयी ,कप्तान के 40 साल के तजुर्बे को तो छोड़ें , ये गलती टाइटैनिक को ऑपरेट करने वाली कंपनी द वाइट स्टार लाइन जिसको कि 107 जहाजों को ऑपरेट करने का तजुर्बा था उनको भी नज़र नहीं आई और तो और ये गलती टाइटैनिक बनाबे वाली कंपनी हालैंड एंड वुल्फ को भी नज़र नहीं आई जिन्होने टाइटैनिक से पहले ही 500 से ज्यादा जहाज बना लिए थे |
टाइटैनिक को बनाने की शुरुवात 1907 में हुई थी और तक़रीबन 3 साल का समय और लगभग 2000 कारीगरों की मेहनत के बाद जहाज को तैयार किया गया था , और अब जहाज पूरी तरह से तैयार हो गया था पर इसको टेस्ट करना अवि बाकी था , टाइटैनिक बनाने वालो का उस पर भरोसा पूरा तब हुआ जब टाइटैनिक ने अपना पहला टेस्ट रन पास कर लिया था , टेस्ट के पास होते ही पूरी दुनिया के प्रतिस्ठित अखबारों ने इसकी मार्केटिंग की गयी जिसकी हैडिंग थी आंन सिंकेबल टाइटैनिक (कभी ना डूबने वाला टाइटैनिक ) बना लिया गया है |
अब जहाज का पहला सफर इंग्लैंड के साउथ हेम्पटन शहर से शुरू होना था जिसका दिन 10 अप्रैल 1912 को रखा गया और जिसकी मंजिल अमरीका का शहर न्यूआर्क था | अब बात करें टाइटैनिक के इकनॉमिक पोर्सन में सफर करने की कीमत 30 डॉलर जबकि फर्स्टक्लास में सफर करने की कीमत 150 डॉलर थी जो की आज के दौर में लगभग 350000 रुपये बनते हैं , वहीं दूसरी तरफ टिकट भी सभी बुक हो गए थी | आखिर वो समय आ गया जब टाइटैनिक अपने पहले सफर की शुरुवात करने वाला था |
1- दिन के ठीक 12 बजे टाइटैनिक ने अपने सफर को शरू किया और साथ ही टाइटैनिक की गलतियां सामने आनी शरू हो गयी , कप्तान स्मिथ को मालिक तरफ से डेडलाइन दी गयी थी कि किसी भी सूरत में 17 अप्रैल तक (यानी 7 दिनों में न्यूऑर्क ) पहुंचना है | जिसके लिए कप्तान ने जहाज की रफ़्तार बहुत तेज़ रखी थी , और यही थी टाइटैनिक की सबसे पहली गलती, क्योकिं दुनिया की कोई भी गाड़ी हो मशीन हो या जहाज उनके कई ऑपरेटिंग प्रोसीजर होते हैं जिनमें स्पीड लिमिट भी एक है | पिछले तीन दिनों से लगातार टाइटैनिक न्यूयॉर्क की तरफ तेजी से बढ़ रहा था क्योंकि उसको अपनी डेडलाइन को पूरा करना था ताकि टाइटैनिक की इमेज बरकरार रहे,
2 – 14 अप्रैल 1912 को जब लगातार टाइटैनिक चलता जा रहा था तो समुद्र में शाम के समय एकदम मौसम शांत था लेकिन विजिबिलिटी कम हो गई थी कोहरा चारों तरफ था, वही टाइटैनिक से कुछ ही घंटे आगे चल रही है एक और दूसरे जहाज ने टाइटैनिक को कई बार सिग्नल भेजें कि आगे कुछ आइसबक्स है इसका मतलब है (बर्फ की बड़ी-बड़ी चट्टानें है)| एक्सपर्ट का मानना है कि यह सिग्नल उनको 6 से ज्यादा बार भेजे गए थे अब इसे वायरलेस ऑपरेटर की कोताही समझे या उनकी लापरवाही जो उन्होंने इन पर ध्यान नहीं दिया यह थी टाइटैनिक की दूसरी बड़ी गलती
3 – अब टाइटैनिक की तीसरी गलती की बात करें तो तीसरी गलती थी उसमें दूरबीन का ना होना अब आप समझ रहे होंगे कि दूरबीन से जहाज का क्या लेना देना दूरबीन का जहाज में बहुत बड़ी अहमियत है जिससे कि जो जहाज के पहरेदार होते हैं वह कैसे देख कर बता सकते हैं कि आगे कुछ है या कुछ जा रहा है लेकिन उनके पास दूरबीन ही नहीं थी तो यह थी जहाज की तीसरी गलत या यूं कहें कि टाइटेनिक की तीसरी गलती
4 – टाइटैनिक की चौथी गलती की बात करें तो वह थी टाइटैनिक में ही खुद लगी हुई पेंच का मतलब है कि जो लोहे को आपस में जोड़ती है या कहें कि दो प्लेटों को आपस में जोड़े रखती है अवमूमन जहाजों में पेंच स्टील के होते हैं लेकिन टाइटेनिक में कास्ट आईरन की थी जो दबाव बनने से खुल गई और जहाज में पानी भरने लगा |
5- टाइटैनिक की अगली गलती की बात करें तो जब जहाज धीरे-धीरे डूब रहा था तो सभी को निकालना जरूरी था तो निकालने के लिए लाइफबोट का इस्तेमाल किया गया तो देखा गया कि उसमें 20 लाइफबोट थी जबकि कैपेसिटी 32 की थी
तो कुल मिलाकर देखा जाय तो टाइटैनिक उस समय का सबसे बड़ा, आलीशान और महंगा होने के बाबजूद भी ऊंचाई की बुलंदी को छूने के बजाय समुद्र की गहराई में दफ़न हो गया | उस दशक में लोगों के एक बार सफर करने का सपनों का जहाज आज समुद्र की गहराई में समुद्री जीवों का बसेरा बन के रह गया | पानी के ऊपर चलने वाले इस जहाज का वजूद अब पानी के अंदर भी खतरे में है |
अंत में यही कहा जा सकता है की समय रहते ही टाइटैनिक की गलतियों को सुधार लिया जाता तो आज ये जहाज एक मिसाल होता |