भगवान शिव और माता पार्वती का शुभ विवाह स्थल -Triyuginarayan Temple, Exploring

उत्तराखंड की इस जगह में पिछले कुछ सालों में शादी करने का ट्रैंड सा बन गया है , हालात ये हो चुके हैं कि साल 2024 तक यहाँ शादियों की बुकिंग फुल हो चुकी है, कह सकते हैं कि अगर आपको भी यही शादी करने का मन है तो आपको 2024 के बाद ही यहाँ शादी करने का मौका मिलेगा | जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के इस खूबसूरत जगह जो Destination Wedding के रूप में खूब चर्चाओं में है,

जी हां अब तो आप समझ ही चुके हैं कि हम बात कर रहे हैं भगवान शिव और पार्वती के विवाह स्थल त्रिजुगीनारायण की

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। त्रियुगीनारायण मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है लेकिन ये मंदिर भगवान शिव और पार्वती के विवाह के स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा है, साथ में देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती भी मौजूद हैं । त्रियुगीनारायण मंदिर, हिन्दू धर्म में एक लोकप्रिय व महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।

माता पार्वती हिमालय की पुत्री थी, जो हिमावत के राजा थे। त्रियुगीनारायण स्थान हिमावत की राजधानी थी। त्रियुगीनारायण मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के सामने अखंड ज्योति जलती रहती है। इसलिए मंदिर को ‘अखंड धूनी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि दिव्य ज्योति भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के समय से जलती आ रही है। यह दिव्य ज्योति तीन युगों से जल रही है इसलिए इस मंदिर का नाम त्रियुगी हो गया था। ‘त्रियुगीनारायण तीन शब्दों से मिलकर बना है। इन शब्दों का अर्थ हैः- ‘त्रि’ का अर्थ है तीन है। ‘युगी’ का अर्थ समय की अवधि को दर्शाता है। नारायण भगवान विष्णु का एक नाम है। इसलिए इस स्थान को ‘त्रियुगी नारायण’ नाम दिया गया है।

भगवान शिव और पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने शादी को औपचारिक रूप दिया था और समारोहों में पार्वती के भाई के रूप में कार्य किया, भगवान ब्रह्मा जी ने शादी में एक पुजारी के रूप में कार्य किया था। सभी ऋषियों की उपस्थिति में विवाह सम्पन्न किया गया था। शादी के सही स्थान को मंदिर के सामने ब्रह्मा शिला नामक पत्थर द्वारा चिह्नित किया जाता है। इस स्थान की महानता को स्थल-पुराण में भी मिलता है। पवित्रशास्त्र के मुताबिक, इस मंदिर में जाने वाले तीर्थयात्रियों को अग्नि कुण्ड की राख को पवित्र मानते हैं और इसे अपने साथ ले जाते हैं। यह भी माना जाता है कि यह राख वैवाहिक जीवन मंगलमय रहता है। विवाह में सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है।

त्रियुगीनारायण मदिर के आँगन में सरस्वती नाम की एक धारा का उद्गम है। इसी धारा से सारे पवित्र सरोवर भरते हैं। सरोवरों के नाम रुद्रकुण्ड, विष्णुकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड व सरस्वती कुण्ड हैं। कहा जाता है कि रुद्रकुण्ड में स्नान, विष्णुकुण्ड में मार्जन, ब्रह्मकुण्ड में आचमन और सरस्वती कुण्ड में तर्पण किया जाता है।

श्रद्धालु इस पवित्र त्रियुगीनारायण मंदिर की यात्रा करते हैं वे यहां प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहे।

बात करें यहाँ की तो अभी तक यहाँ कई शादियां हो चुकी हैं यहाँ होने वाली शादी में कई हस्तियां भी शामिल हैं जिनमें उत्तराखंड के मंत्री धनसिंह रावत, अभिनेत्री कविता कौशिक समेत कई जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी भी शामिल हैं | खूबसूरती के साथ साथ यहाँ पर भगवान शिव के विवाह के सभी साक्ष्य मौजूद हैं |  तो देर किस बात की आप भी कीजिये बुकिंग अपनी शादी की और भगवान को साक्षी मानकर बनायें अपने वैवाहिक जीवन को मंगलमय और साथ ही लीजिये यहाँ के अलौकिक सौंदर्य का नज़ारा |

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